बिहार में अपराध और राजनीति के बैकग्राउंड पर पिछले कुछ समय में कई वेब सीरीज रिलीज हुई हैं। इसी कड़ी में ‘Jehanabad: ऑफ लव एंड क्राइम’ भी है। सत्यांशु सिंह, राजीव बरनवाल के डायरेक्शन में बनी इस सीरीज के मेन प्लॉट में 2005 में जहानाबाद जेल तोड़कर कैदियों के भागने का चर्चित मामला है। लेकिन इसके साथ कहानी में टाइटल की तरह ही प्यार भी है और युद्ध भी। जाति की राजनीति से लेकर नक्सलवाद और कॉलेज पॉलिटिक्स तक ऐसे कई मुद्दे और घटनाएं हैं, जो आपको धीरे-धीरे ही सही, लेकिन सीरीज से बांधकर रखती है।
Jehanabad’ सीरीज की कहानी
सुधीर मिश्रा के बैनर तले बनी ‘जहानाबाद- ऑफ लव एंड वॉर’ एक असल घटना से प्रेरित है। साल 2005 में बिहार के Jehanabad में 372 कैदी एक नक्सली हमले के बाद जेल तोड़कर भाग गए थे। बिहार में अपराध के आगे प्रशासन की नाकामी के इस चर्चित कांड के बहाने मेकर्स ने एक काल्पनिक कहानी बुनी है। कहानी में दीपक कुमार (परमब्रत चट्टोपाध्याय) एक नक्सल ग्रुप का कमांडर है, जो जेल में कैद है। उसे छुड़ाने के लिए नक्सल गैंग एक ओर जहां बड़े हमले की प्लानिंग कर रहा है, वहीं कॉलेज में आए नए-नए अंग्रेजी प्रोफेसर अभिमन्यु सिंह (ऋत्विक भौमिक) और उसकी स्टूडेंट कस्तुरी मिश्रा (हृषिता गौर) की प्रेम कहानी भी पनप रही है। सीरीज की शुरुआत से ही यह दोनों कहानियां एक-दूसरे के समांतर चल रही होती हैं। लेकिन जैसे-जैसे आप एपिसोड दर एपिसोड आगे बढ़ते हैं, ये दोनों समांतर कहानियां एक-दूसरे में मिलने लगती हैं।
‘जहानाबाद’ सीरीज का रिव्यू
‘जहानाबाद’ वेब सीरीज के 10 एपिसोड हैं और करीब हर एपिसोड की लंबाई 35-50 मिनट के बीच है। यह सीरीज धीमी आंच पर रखी चाय की केतली की तरह है, जैसे-जैसे समय बीतता है, केतली की गर्मी बढ़ती जाती है। चाय में उबाल आता और फिर सुगंध और स्वाद से यह आपको ताजगी देती है। सीरीज की शुरुआत आपको थोड़ी धीमी लग सकती है। खासकर शुरुआती 6 एपिसोड तक आप इसे बस देखते रहते हैं, लेकिन सातवें एपिसोड में कहानी में ट्विस्ट आता है, जो आपको फिर कुर्सी छोड़ने का मौका नहीं देता। सीरीज का क्लाइमेक्स थोड़ा ड्रैमेटिक और फिल्मी स्टाइल का है।
वेब सीरीज का मेन प्लॉट भले ही जेल तोड़कर भागने वाला कांड हो, लेकिन मेकर्स ने जाति की राजनीति और लाल सलाम के लगते नारों के बीच दर्शकों को बहुत कुछ दिखाने की कोशिश की है। रजत कपूर सीरीज में एक राजनेता शिवानंद सिंह के रोल हैं। पूर्व विधायक हैं, इसलिए इस बार चुनाव में जीत के लिए ठाकुर वोट बैंक के साथ ही दलितों और ओबीसी वोट बैंक को भी साधने की जुगत में लगे हुए हैं। रजत कपूर ने इस किरदार को संभाला तो बखूबी है, लेकिन उनके किरदार को लिखने में रिसर्च की कमी दिखती है। कॉलेज में ऊंची और नीची जाति के कारण एक झगड़ा दिखाया गया है, इस कारण कहानी में बदलाव भी आते हैं, लेकिन फिर मेकर्स कॉलेज की राजनीति को जैसे भूल से जाते हैं।